Tuesday 8 January 2019

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# बचपन की यादें #

जब हम नन्हीं पगडंडी पर,

साइकिल खूब भगाते थे।

गिर जाने पर चोटें लगती,

फिर झट उठ जाया करते थे।।

खेतों की मेड़ों पर घूमें,

नहरों में खूब नहाते थे।

सरसों के फूलों से खुद के,

गहने बनवाया करते थे।।

वह चने, मटर के खेतों में,

हम धूम मचाया करते थे।

उन गुच्छों की फलियों से हम,

होरा भुजवाया करते थे।।

वह दिन में खेतों की मस्ती,

वह रातों में खेली लुका-छुपी।

हम भूल नहीं पाए अब तक,

वो माँ के हाथों की लस्सी।।

"स्कूल चले हम" यह नारा,

दिनभर दोहराया करते थे।

छुट्टी की घंटी सुनकर हम,

उधम मचाया करते थे।।

मम्मी की गोदी की यादें

वो रात में लोरी या गाने।

पापा की उंगली पकड़ तभी,

हम गांव घुमाया करते थे।।

बचपन तो बड़ा सुनहरा था,

जब कंचे खेला करते थे।

मम्मी डाटा ही करती थी,

पापा तो पीटा करते थे।।

हम भूल गए मस्ती के दिन,

जब गिल्ली खेला करते थे।

वो बागों की क्या मस्ती थी,

पेड़ों पर उछला करते थे।।

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