**क्यों याद रही तुम्हारी आती है। **
कैसे भूलूँ उन रातों को,
कैसे भूलूँ उन बातों को,
तुम क्यों सपनों में आती हो ,
क्यों याद तुम्हारी आती है।।
ना बीत रहे तन्हा यूँ दिन,
ना बरखा ; ना सर्दी बीत रही,
बस याद रहा सावन मौसम,
क्यों याद तुम्हारी आती है।।
जब चलती थी तुम उछल- उछल,
उन गलियों में होती चहल-पहल,
यह बात समझ ना आती है,
क्यों याद तुम्हारी आती है।।
उन बच्चों जैसी बातों में,
उन नटखट चंचल यादों में,
तुम कहाँ खो गई इस जग में,
क्यों याद तुम्हारी आती है।।